۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
लखनऊ

हौज़ा/अलमुस्तफा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ईरान के अध्यक्ष अयातुल्लाह अब्बासी और अन्य अतिथियों के सम्मान में एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ, लखनऊ एवं आसपास के क्षेत्रों से उलेमा ने भी भाग लिया

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,लखनऊ 6 फरवरी,मजलिस ए उलमा-ए-हिंद द्वारा आयोजित "हुसैनाबाद कम्युनिटी सेंटर" में "क़ौम की तामीर में मदारिस का किरदार के उनवान से एक अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें ईरान और हिंदुस्तान के ओलेमा ने बड़ी संख्या में शिरकत की।

अलमुस्तफ़ा विश्वविद्यालय ईरान के अध्यक्ष अयातुल्लाह डॉ. अली अब्बासी ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया और कार्यक्रम की अध्यक्षता की उनके साथ हुज्जतिया मदरसे के अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम अक़ाई तलख़ाबी, हिंदुस्तान में अलमुस्तफ़ा विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम अक़ाई शाकिरी और हौज़ा-ए-रियासत के अध्यक्ष अक़ाई शाकानी ने भी शिरकत की।

मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने मेज़बानी की और ज़िम्मेदारी निभाई। 

कॉन्फ्रेंस की शुरुआत क़ारी मौलवी सैय्यद मुहम्मद तक़ी जाफरी जामिया इमामिया तंज़ीमुल मकातिब के छात्र ने कुरान की तिलावत से की। तिलावत के बाद जामियातुत तब्लीग़ के छात्र मौलवी मुहम्मद मोहसिन ने नात शरीफ पढ़ी। इसके बाद कॉन्फ्रेंस के संयोजक हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने इस्तेक़बालिया तक़रीर की।

उन्होंने जामातअल-मुस्तफा अल-अलामिया के अध्यक्ष अयातुल्लाह डॉ. अली अब्बासी और उनके साथ आए सभी अतिथियों का भारत में स्वागत करते हुए कहा कि ईरान और भारत का बहुत पुराना रिश्ता है, इंशाल्लाह आगे में भी दोनों देशों के बीच ऐसे ही रिश्ते बने रहेंगे।

अयातुल्लाह डॉ. अली अब्बासी ने अध्यक्षीय तक़रीर में भारत और ईरान के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों के महत्व और उपयोगिता को समझाया और कहा कि हम मदरसों के माध्यम से इस दोस्ती को और बढ़ावा दे सकते हैं।

उन्होंने कहा कि मदरसों ने हमेशा क़ौम एवम देश के निर्माण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इसलिए हमें मदरसों को व्यवस्थित और बेहतर बनाने की ज़रूरत है। तक़रीर के दौरान उन्होंने रजब अल-मुर्जब महीने की खूबियों पर भी प्रकाश डाला।

जमियतुल-मुस्तफा अल-अलामिया के हिंदुस्तान में प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम अक़ाई शाकिरी शकरी ने अपनी तक़रीर में कहा कि एक समय था जब लखनऊ के मदरसों ने क़ुम और नजफ़-ए-अशरफ़ के मदरसों का मार्गदर्शन किया और उन्हें मज़बूत किया, लेकिन आज स्थिति अलग है। उन्होंने कहा कि भारत में मदरसों का अतीत गौरवशाली रहा है, जिसे पुनर्जीवित करने की सख़्त ज़रूरत है।

इससे पहले मौलाना सफदर हुसैन जौनपुरी ने तकरीर करते हुए कहा कि हमें उम्मीद है कि जमियतुल-मुस्तफा मदरसों के सुधार में अहम भूमिका निभाएगा।

उनके बाद मौलाना मुहम्मद मोहसिन तक़वी इमाम जुमा शिया जामा मस्जिद दिल्ली ने कहा कि हमारे मदरसों को आत्मनिर्भर होना चाहिए। जब ​​तक मदरसे आत्मनिर्भर नहीं होंगे, हम उन समस्याओं से मुक्त नहीं हो सकते जिनका हम सामना कर रहे हैं।

कॉन्फ्रेंस में आदिल फ़राज़ ने भारत में मदरसों के संक्षिप्त इतिहास का वर्णन किया और कहा कि शियों का पहला मदरसा अवध में स्थापित किया गया था और फ़िक़ह जाफ़री की तदवीन और उसको लागू करने की देने की प्रक्रिया भी अवध से शुरू हुई थी, जिसमें सैय्यद अयातुल्लाह दिलदार अली गुफ़रानमआब की कोशिशों शामिल थी।

कार्यक्रम के अंत में मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी ने समापन तक़रीर करते हुए कहा कि मदरसों ने क़ौम के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लखनऊ ने हमेशा ज्ञान और साहित्य को बढ़ावा दिया है।

ऐसा केवल भारत में ही नहीं हुआ बल्कि लखनऊ ने नजफ़-ए-अशरफ़ और ईरान के हौज़ो की भी मदद की और वहां के उलेमा कुछ मसाएल में भारत के उलेमा से मार्गदर्शन लेते थे, जिसका प्रमाण इतिहास में उपलब्ध है।

उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में मदरसों की व्यवस्था में सुधार की ज़रूरत है, इस संबंध में उन उलेमा को भी आगे आना चाहिए जो लंबे समय से ईरान में रह रहे हैं। ये दौर आज़माइश का ​​है जिसमें ईरान से आकर भारत में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने की सख़्त ज़रूरत है।

ईरान और इराक में अपना पूरा जीवन बिताने के बाद उन्हें मिल्लत की समस्याओं और मदरसों की गंभीर स्थिति की आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं है, जो इस ज़िम्मेदारी को उठाने से कतरा रहे हैं। अंत में मौलाना ने सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा किया। कार्यक्रम में हौज़ा-ए-इल्मिया हज़रत दिलदार अली गुफ़रानमआब के छात्रों ने तवाशी पेश की। मौलाना अतहर कश्मीरी ने कार्यक्रम का संचालन किया।

कार्यक्रम में मौलाना रज़ा हुसैन रिज़वी, मौलाना निसार अहमद ज़ैनपुरी, मौलाना इस्तफा रज़ा, मौलाना मुहम्मद मियां आब्दी क़ुम्मी, मौलाना मंज़र सादिक़ ज़ैदी, मौलाना हैदर अब्बास रिज़वी, मौलाना सिराज हुसैन, मौलाना हामिद हुसैन कानपुरी, मौलाना नसीम अब्बास, मौलाना तसनीम मेहदी ज़ैदपुरी, मौलाना कल्बे अब्बास सुल्तानपुरी, मौलाना मुहम्मद मूसा सुल्तान उल  मदारिस, मौलाना अनवारुल हसन अटवा, मौलाना क़सीम अब्बास बिजनौर, मौलाना पैग़म्बर अब्बास नौगानवी, मौलाना क़रातुल ऐन मुज्तबा नौगानवी, मौलाना काज़िम हुसैन मज़हरी, मौलाना वसी अल हसन, मौलाना मुहम्मद इब्राहिम जामियातुत तब्लीग़, मौलाना फ़िरोज़ अली बनारसी, मौलाना तहज़ीब-उल-हसन तंज़ीमुल मकातिब, मौलाना शम्स-उल-हसन, मौलाना हसनैन बाक़री जामिया नैमिया, मौलाना रईस हैदर जलालपुरी, मौलाना इश्तियाक हुसैन, मौलाना हमीद-उल-हसन सीतापुरी,मौलाना फ़िरोज़ मेहदी गढ़ी मजीरा, मौलाना ज़ुहैर क़ैन क़ुम्मी, मौलाना अहमद अब्बास घोसी, मौलाना शब्बीर फ़ैज़ी नजफ़ी, मौलाना मज़ाहिर हुसैन मऊ, मौलाना डॉ. शुजाअत अली, मौलाना रज़ा इमाम उतरौलवी, मौलाना ज़व्वार हुसैन, मौलाना शबाहत हुसैन, मौलाना क़मरुल हसन हल्लौरी, मौलाना फ़िरोज़.हुसैन, मौलाना मुहम्मद सक़लैन बाक़री जौरासी, मौलाना ग़ुलाम मेहदी गुलरेज़, मौलाना शाहनवाज हैदर, मौलाना मुहम्मद मेहदी, मौलाना कुर्बान अली, मौलाना हुसैन मेहदी, मौलाना मुहम्मद हैदर, मौलाना वसी इमाम आबिदी, मौलाना अली हाशिम आबिदी, मौलाना आसीफ जायसी, मौलाना अरशद हुसैन अर्शी, मौलाना मीसम ज़ैदी, मौलाना मुनव्वर अब्बास उनके अलावा जामिया इमामिया तंज़ीमुल मकातिब, हौज़ा-ए-इल्मिया जामियातुत तब्लीग़, मदरसा नाज़मिया, सुल्तानउल मदारिस, हौज़ा-ए-इल्मिया हज़रत दिलदार अली गुफ़रानमआब और बैरून-ए-लखनऊ के मदरसों के शिक्षक, इमामे जुमा और उलेमा ने बड़ी संख्या में भाग लिया। मजलिस-ए-उलमा-ए-हिंद उन सभी उलेमाओं का शुक्रिया अदा करती है जिन्होंने कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया।

जारी कर्ता:  मजलिस-ए-उलेमा-ए-हिंद

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